बिहार चुनाव : एक्जिट पोल के निहितार्थ
7 नवम्बर को बिहार में तीसरे चरण का चुनाव सम्पन्न होते ही मतदान पूर्ण हो गया,चुनाव परिणाम 10 नवम्बर को आना है।तीसरे चरण के मतदान का समय समाप्त होते ही एक्जिट पोल सर्वेक्षण परिणामों की बाढ़ आ गई।अधिकांश चैनलों के मुताबिक तेजस्वी नीत महागठबंधन को बहुमत मिलने के आसार हैं।आजतक के सर्वेक्षण के मुताबिक सर्वाधिक 45% लोगों ने तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के लिये योग्य माना है जबकि34% एक्सिट पोल मत के साथ नीतीश कुमार दूसरी पसन्द हैं ।सभी परिणामों का यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि तेजस्वी यादव बिहार के भावी मुख्यमंत्री हो सकते हैं और नीतीश कुमार के सुशासन का अंत सन्निकट है।
देश में बिहार की राजनीतिक चेतना की चर्चा की जाती है और कहा जाता है कि बिहार की जनता राजनीतिक रूप से परिपक्व है।मेरी धारणा इसके विपरीत है।अभी भी बिहार की राजनीति जाति आधारित वोटिंग और ग्रामीण क्षेत्रों में समूह मतदान ट्रेन्ड की धारणा से प्रभावित है।ग्रामीण गरीबों में अभी भी राजनीतिक चेतना नहीं है, अक्सर उनके समूह का रसूखदार व्यक्ति जो निर्णय लेता है, बहुसंख्यक अपनी राजनीतिक चेतना को उसमें विसर्जित कर देते हैं।
एक्जिट पोल परिणामों से यह प्रतीत हो रहा कि बेरोजगारी सबसे प्रभावी मुद्दा बना ।तेजस्वी बिहार की बोली जनता को समझाने (या बर्गलाने?) में सफल हो गए कि वह 10 लाख सरकारी नौकरी देंगे,वह भी पहली कलम से(?)। दूसरी तरफ राजग का 19 लाख रोजगार के अवसर आश्वस्त करनेवाला संकल्प नहीं लगा।विकास पर भी राजग प्रभावी ढंग से बिहार की जनता को विश्वास में नहीं ले सका।मोदी ने एड़ी-चोटी एक कर दी, पर ऐसा लगता है कि उनका करिश्माई व्यक्तित्व भी नीतीश को सत्ता विरोधी लहर से उबार नहीं पाएगा।हाँ, इतनी परिपक्वता जरूर दिखी की कश्मीर, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि मुद्दे जिसे राजग के शीर्ष नेता बिहार का चुनावी मुद्दा बनाना चाह रहे थे,उसे बिहार की जनता ने नकार दिया।राष्ट्रीय स्तर पर मोदी का यह बाण कारगर हो सकता है, राज्य स्तर पर विकास,गरीबी,बेरोजगारी आदि क्षेत्रीय समस्याओं पर ही बात करनी पड़ेगी।कई जनसभाओं में सुशासन बाबू आपा खोते नजर आए।स्तरहीन व्यक्तिगत टिप्पणियों व अंत में अन्तिम चुनाव का इमोशनल कार्ड का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।जनता में यह स्पष्ट संकेत गया कि नीतीश कुमार चूक गए हैं और उन्होंने अपनी पराजय स्वीकार कर ली है।चिराग पासवान वोटकटवा की भूमिका में सफल रहे और नीतीश के राजनीतिक ताबूत की कील सिद्ध हो सकते हैं।एक तरफ नीतीश थकेला दीखे तो दूसरी तरफ तेजस्वी ने लालू,राबड़ी व तेजप्रताप को पोस्टर से हटाकर यह संकेत देने का प्रयास किया कि वह भ्रष्टाचार व परिवारवाद से ऊपर उठकर बेरोजगार युवाओं की आशाकिरण व मसीहा हैं।प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर तेवर न दिखाकर व नीतीश पर भी टिप्पणी में संयम न खोकर तेजस्वी ने राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है।
कुल मिलाकर बिहार की राजनीति नई करवट लेती दिखाई पड़ रही।जिस प्रकार 1970 की दशक में यंग यंग्री मैन आमिताभ बच्चन का अभ्युदय हुआ था,बिहार की राजनीति में उसी प्रकार युवा नेता तेजस्वी के अभ्युत्थान की पृष्ठभूमि तैयार है।तमाम अटकलों पर से 10 नवम्बर को पर्दा उठ जायेगा।अगर तेजस्वी की बिहार के मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी होती है तो राजनीति के अभिमन्यु को अपने माता-पिता लालू -राबड़ी के जंगलराज व जातिगत राजनीति के दलदल से बाहर निकलना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
अब देखना ये है कि अमिताभ की तरह ये सुपरस्टार बनेगा या उनकी तरह पहले कुछ फ्लाॅप फिल्म देगा
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